Thursday, January 26, 2012




सब कुछ बदल गया है

सब कुछ बदल गया है जबसे तुम मिल गयी
खुद से भी ज्यादा अपना कोई लगता है
मेरी तो सारी तमन्नाएँ सिकुड़ गयीं
खुशियाँ भी मेरी अब तुमसे ही जुड़ गयीं
सब कुछ बदल गया है जबसे तुम मिल गयी
माँगा नहीं खुदा से मैंने तुमको कभी
देखा हूँ पर, आँखों में तेरे जब भी कभी
जाने क्यूँ तब-तब आँखें मेरी भर गयीं
सब कुछ बदल गया है जबसे तुम मिल गयी
साहस था इतना कि खुदा से भी मैं न डरता था
खुश था, और सच्चा जो लगता वही करता था
देखा तुम्हें थिरकते काँटों पर जबसे मैंने
खुशियाँ मेरी बिखर गयी, होठें भी सिल गयीं
सब कुछ बदल गया है जबसे तुम मिल गयी

अपनत्व-भाव को शाश्वतता दो
हे कृष्ण !
तुमने अपनी अमर-वाणी में
कह तो दिया कि
’आदमी अकेला है’,
फिर अकेला दिमाग भी तो
संचालित कर सकता था आदमी को
दिल देने की जरुरत ही क्या थी?

क्योंकि दिल जब भी हावी होता है दिमाग पर
तभी बेचैन होकर कोई अपना ढूंढने लगता है,
पर तुम्हारी वाणी भी तो
सूर्य की तरह अटल है,
कुछ देर भले ही
गलतफहमियों में जी लेता है आदमी
अपनों के साथ,
पर सच्चाई का अहसास होते ही
दर्द से भर जाता है दिल का कोना-कोना
और गुब्बारे की तरह फुला हुआ दिल
फूट कर सिकुड़ जाता है

अब तुम ही बताओ –
कहाँ जाऊं इस सिकुड़े हुए दिल को लेकर?
रख लो मेरे सिकुड़े हुए दिल को अपने ही पास,
मुझे तुम्हारा कड़वा सच अब हो गया है स्वीकार

रख लो मेरे सिकुड़े हुए दिल को अपने ही पास,
या फिर
अपनी अमर-वाणी में संशोधन कर
अपनत्व के भाव को शाश्वतता दो


प्रेम

मैंने देखा है नदी को करीब से
और
हवाओं के दवाब से
उसकी उठती-गिरती लहर धडकनों को भी,
कौन कहता है – नदी निष्प्राण है ?

मैंने नदी से पूछा –
किया है तुमने कभी प्यार ?
उसने कहा –
हाँ, किया है
और करती रहूंगी लगातार

मैंने पूछा –
कौन है वह ?
उसने बताया –
दूर गगन में रहता वह
हर दिन रूप बदलता वह,
कभी-कभी वह जाता गाँव
मैं थक-हार बैठ जाती तब
नयन बिछाए उसकी राह,
आता वहां से केश कटाए
अपना मुँह छोटा करवाए,
किन्तु जब भी वह आ जाता
मुझमें नया उमंग भर जाता,
मैं उछल-उछल शोर मचाती
थिरक-थिरक गाना गाती

मैंने कहा –
लेकिन वह तो बहुत दूर है,
मिला नहीं तुम्हें और कोई
इतना बड़ा यह भव है,
फिर चाँद संग मिलन तुम्हारा
कठिन ही नहीं, असंभव है

क्रोधित हुई नदी, फिर बोली –
जानती थी –
तू मानव कितना गिर गया है !
प्रेम को
तूने ही किया है कलंकित,
बना दिया है अर्थहीन,
बांध दिया है तन के सुख से
कि डरने लगे हैं लोग अब प्रेम से

अरे ! याद कर
मेरे ही कूल पर बसी कुटिया में
रहने वाले ऋषि ने बताया था –
प्रेम तन का नहीं,
मन से मन का मिलन होता है,
और देख,
देख झाँककर तू मुझमें
क्या चाँद नहीं दीखता मेरे धवल ह्रदय में !
फिर ना कहना दीवानी हो गयी हूँ


दिल ने है प्यार किया, मैंने इकरार किया
दिल के ही कहने पर, मैंने इज़हार किया
दिल ही तो है जो पुकारता है प्रिया ! प्रिया !

दिल के भी किस्से बड़े ही अजीब से हैं
ना जाने कितने नादां इसके शिकार हुए हैं
आ जाये कब किस पर, किसको है पता !
ग़ालिब भी इसके गुलाम हुए हैं

बांध से बाढ़ अधिक देर रुकता नहीं
प्रेम कितना छुपाओ वो छुपता नहीं
बांध लो चाहे जंजीर पावों में तुम
प्रेम तूफ़ान है कभी झुकता नहीं

किया भूल तुमने जो इसे टोकने की
दिल के पंछी को उड़ने से रोकने की
तड्पाएगा तुमको रुलाकर-सताकर
बेचैन कर देगा नींदे चुरा कर

फिर ना कहना मैं दीवानी हो गयी हूँ
खोयी हूँ सपनों में और बेगानी हो गयी हूँ
प्रेम होता ही दरअसल बहुत ताकतवर है
तभी तो कहा प्रेम ही ईश्वर है

इसे कैद रखना बड़ा ही कठिन है
फिर मेरी या तेरी हस्ती ही क्या है
मौज उनकी तो पूछो प्रेम जिनको हुआ है
मिल जाये समझना खुदा की दुआ है

सच्चा आस्तिक


हवाएँ बेपरवाह टकराती हैं पर्वत से

नदियाँ नहीं डरती शिलाओं की करवट से


कभी तो सुना नहीं

हवाओं को कोई टोक दिया,

नदियों को सागर में मिलने से रोक लिया


दरअसल अपनी स्वाभाविकता में जो कोई भी होता है

जो आगे की बातें खुदा पर छोड़ देता है

वही सफल होता पाने में मंजिल

उसी को खुदा हर ख़ुशी देता है,

साहस से आत्मा की पुकार पर बढ़ जाये जो

वही सच्चा आस्तिक भी होता है


विरह


विरह में दिल पिया को पागल हो बुलाता है

विरह ही पहली बार प्रेम का अहसास दिलाता है


विरह में आदमी खो जाता है

बीता पल बहुत याद आता है

विरह दिल की प्यास बढ़ाता है

मिलन की आस दिलाता है


विरह नींदें चुराता है

रंगीन सपने बुन जाता है

कुछ ज्यादा बढ़ जाये तो

विरह बहुत रुलाता है


विरह गुदगुदाता है

दर्द मीठे दे जाता है

’प्रेम है’ इंकार करने से

विरह और भी तड़पता है


विरह एक इंतजार है

दिल होता बेकरार है

दिखता नहीं कुछ भी साजन सिवा

विरह में नशा होता सवार है


विरह काटे नहीं कटता है

दर्द क्षण-क्षण में बढ़ता है

सूरज भी पक्षपात करता है

लंगरा-लंगरा कर चलता है


विरह आदमी की उम्र को बढ़ाता है

पहली बार प्रेम का अहसास दिलाता है


चाँद तो एक ही है


पलकों को झुका कर

मुझसे नजरें छुपाने की कोशिश कर,

फासले दीवार नहीं बन सकते



मैंने तो तुमसे नजरें तब भी मिलायी थी

देख कर चाँद को,

जब जमीं की दूरियाँ बहुत थीं,



क्योंकि चाँद तो एक ही है

जिसे तुम भी देखती हो

और मैं भी


सपनों में आना


न तुमको पता चलेगा

न दुनिया को,

न मेरी आँखें खुली होंगी

न दीवारें सुनेगी,


सपनों में आना तुम

सपनों में आना,

खो जाएंगे हम तुम

एक-दूसरे में गुमसुम


रात भर सोता नहीं सूरज


रात भर सोता नहीं सूरज

छिप-छिप कर रोता है सूरज


सुबह हुई, सूरज आया है

आँखें उसकी लाल-लाल है,

पड़ी घास पर बूंदें सभी

उसके अश्रुओं की फुहार है


किरण-वस्त्र से पोंछ रहा वह

अश्रु-बूंदों को सोख रहा वह

कर प्रकाश, प्रिया को खोज रहा वह

थक कर अब घर लौट रहा वह


कल फिर आएगा वह

बादलों को साथ लिए

छिप-छिप कर ढूंढेगा उसको

एक नयी आस लिए


रात भर सोता नहीं सूरज

छिप-छिप कर रोता है सूरज



जब छूट जाता है


बहुत याद आता है, जब छूट जाता है


यूँ तो कितने ही गिले रहते हैं

आँखों से आंसू भी कभी बहते हैं

कहने को नहीं मिलता है जब कोई

अन्दर ही अन्दर घुटन सहते हैं


परवाह नहीं रहती, जब साथ वो होता है

आयेंगे सैकड़ों – अहसास ये होता है

आता समझ नहीं, पल-पल क्या खोता है

बिछुड़ने के बाद नयन छिप-छिप कर रोता है


जाने को जब हाथ वह हिलाता है,

दर्द हर पल दुगुना कर जाता है

बहुत याद आता है, जब छूट जाता है

मैं पापा का दुलारा हूँ


घर बहुत प्यारा है

माँ भी बहुत प्यारी है

मैं पापा का दुलारा हूँ

उनकी आँखों का तारा हूँ


अनगिनत दुखों ने

अपनी नुकीली नाखूनों से

माँ के चेहरे पर

अनगिनत रेखाएं खींच दी है,

जैसे

चिलचिलाती धूप की बौछार से

पृथ्वी की नदियों को सुखा दिया गया हो


पापा

यूँ तो बहुत शांत रहते हैं,

पर जिस तरह

बीच-बीच में उनके बाल

हलके लाल-लाल हो जाते हैं,

तब पता चल ही जाता है –

कि ये रंगे हुए काले-काले बाल

वस्तुतः सफ़ेद हैं,


उसी तरह

उनके ग़मों का ज्वार भी

बीच-बीच में उठकर

उनके चेहरे को छू जाता है

और रेत के कुछ कण छोड़ जाता है ।


चाहे जो भी हो

घर हमारा है

और बहुत ही प्यारा है

नयी सदी है


नयी सदी है, नया सफ़र है

नये लोग को बढ़ना होगा

नयी राह और नयी है मंजिल

नये कदम से चलना होगा


नये रंग में, नये ढंग से

नव-जीवन निर्मित करना होगा

नयी उमंग और नया जोश भी

नव-युवकों में भरना होगा


नया जो करना हो समाज तो

नवजातों को दीक्षित करना होगा

छोड़ पुरानी रीति-रिवाजें

नारी को शिक्षित करना होगा


अगर चाहिए देश नया तो

हाथ मिलाकर चलना होगा

भूल आपसी द्वेष-भाव सब

नयी सदी को गढ़ना होगा