Tuesday, May 13, 2014

वेश्याओं को मिलने चाहिए लाइसेंस
वेश्यावृति ने ही बलात्कार की घटनाओं पर लगा रखा है अंकुश

-    धनंजय कुमार सिन्हा, सामाजिक कार्यकर्ता

वेश्यावृति के सन्दर्भ में सामाजिक मान्यताओं को अब बदलने की आवश्यकता है. महिलाओं द्वारा वेश्यावृति को हमारे समाज में अति निकृष्ट श्रेणी में रखा गया है, जबकि वेश्यावृति में जितनी भागीदारी किसी महिला की होती है उतनी ही भागीदारी किसी--किसी पुरुष की भी होती है. पर वेश्यावृति में भागीदारी के लिए पुरुष सामाजिक रूप से उतना निकृष्ट नहीं माना जाता है जितना कि महिलाएँ. प्रेमचंद जी ने लिखा है कि अगर कोई भूखा आदमी रोटी चोरी ले तो वह पाप नहीं है. पुरुष यदि आर्थिक रूप से कमजोर और मजबूर हो तो थोड़ा अनैतिक कार्य भी कर दे तो सामाजिक दृष्टि से यह कोई पाप कार्य नहीं है और यह सही भी है. ऐसी सामाजिक सोच भारत जैसे देश की उदारता को भी दर्शाता है. पर भारत के बहुत कम साहित्यकारों ने यह लिखने का साहस किया है कि महिलाएँ यदि अपना एवं अपने बच्चों का भरण-पोषण करने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हो पा रही हैं तो ऐसे में वेश्यावृति कर धन अर्जित करना कोई पाप नहीं है. चोरी के कार्य में दूसरे का भी नुकसान होता है. पर यदि कोई ग़रीब मजबूर महिला वेश्यावृति का कार्य करती है तो इसमें सीधे-सीधे किसी दूसरे को नुकसान नहीं पहुँचता, फिर भी चोरी को कम और वेश्यावृति को सामाजिक रूप से ज़्यादा निकृष्ट श्रेणी में रखा गया है. यह पुरुषों द्वारा वर्षों से सोची-समझी रणनीति के तहत महिलाओं को सामाजिक रूप से नीचे रखने के लिए स्थापित की गई सामाजिक मान्यताओं का परिणाम है. अब तो इन मान्यताओं को देश में क़ानूनी जामा भी पहना दिया गया है. महिलाओं के खिलाफ ऐसी मान्यताओं के जड़े समाज में इस कदर मजबूत हो गई हैं कि अगर किसी पुत्र को यह पता चल जाए कि उसे सबसे ज़्यादा प्यार करने वाली माँ ने वेश्यावृति से धन अर्जित कर उसका पालन-पोषण किया है एवं उसके पढ़ाई-लिखाई की फीस दी है, तो वह पुत्र भी अपनी माँ से घृणा करने लग जाता है. बचपन से घर-पड़ोस एवं समाज में वेश्याओं के संबंध में बुरा-बुरा सुनते-सुनते आज देश के अधिकतर ईमानदार नवयुवा पत्रकार, पुलिस अफ़सर, समाजसेवी और यहाँ तक कि अधिकांश युवा महिलाएँ भी इस विषय पर बिना कुछ विचार किए सीधे तौर पर वेश्यावृति को जघन्य अपराध मानते हैं.
पर महिलाओं को सामाजिक रूप से निकृष्ट रखने की ऐसी मान्यताओं ने कई कुप्रभाव को जन्म दिया है. लड़कियों की भ्रूण-हत्या की अधिकता इसी साजिश का परिणाम है, जिसके परिणामस्वरूप भारत में पुरुषों एवं महिलाओं की संख्या के अनुपात में लगातार अंतर बढ़ रहा है और इस कारण बलात्कार की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं और प्रशासन इसे रोकने में बिल्कुल ही अक्षम है.
देश में चोरी-छुपे चलने वाली वेश्यावृति को अगर पूरी तरह से बंद कर दिया जाय तो देश में बलात्कार की घटनाओं में कम-से-कम पाँच सौ गुना की तो वृद्धि तो ज़रूर ही हो जाएगी. तब प्रशासन का कार्य को अन्य सभी कार्यों को छोड़कर सिर्फ़ बलात्कार की घटनाओं से ही निबटना रह जाएगा.
पिछड़ेपन एवं बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रहे भारत जैसे उदारवादी देश में अब ज़रूरत है कि वेश्यावृति पर निष्पक्षता से पुनर्विचार हो. वेश्यावृति में शामिल महिलाओं की परिस्थियों पर गौर करते हुए इस सन्दर्भ में नई मान्यताओं को विकसित किया जाय. देश में वेश्याओं को व्यक्तिगत एवं ग्रुप लाइसेंस देने के लिए क़ानून बनाने के विषय पर बहस हो.
धनंजय कुमार सिन्हा, सामाजिक कार्यकर्ता
1, BSIDC कॉलोनी, .एन. कॉलेज के सामने, बोरिंग रोड, पटना-800013
मो. 9334036419

13 May, 2014

No comments:

Post a Comment