Wednesday, May 14, 2014

भारतीय राजनीति ने ली नई करवट
मोदी युग की शुरुआत, चुनौतियाँ हज़ार
-   धनंजय कुमार सिन्हा

देश में नरेंद्र मोदी का युग शुरू हो गया है. इस लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ख्वाब पूरा हुआ है. जहाँ कट्टर हिंदूवादी वोटरों में अयोध्या के राममंदिर-पुनर्निर्माण के स्वप्न हिचकोले खा रहे हैं, तो दूसरी तरफ मोदी विरोधी वोटरों ख़ासकर मुस्लिमों में यह भय भी पैदा हुआ है कि कहीं मोदी शासनकाल में उन पर ज़ुल्म तो नहीं ढाए जाएँगे. बेरोज़गार युवक नौकरी के अवसरों के अपार वृद्धि होने की आस लिए बैठा है तो मध्यम एवं निम्न आर्थिक वर्ग के लोगों ने महँगाई कम होने के आसार में भाजपा को वोट दिया है.
नरेंद्र मोदी ने चुनाव की परीक्षा तो तो पास कर ली है, पर अब असली परीक्षा सत्ता को कुशलता से चलाने की है. हालाँकि इन दोनों ही परीक्षाओं का राज्य-स्तरीय अनुभव उन्हें पहले से है. फिर भी महत्वपूर्ण बात यह है कि देश को वे किन दिशाओं की ओर ले जाना चाहते हैं.
राममंदिर के पुनर्निर्माण का प्रयास देश में बड़े स्तर पर सांप्रदायिक हिंसा का सूत्रपात कर सकता है. राजनीतिक तौर पर यह कल्पना भी व्यर्थ है कि मोदी अभी 4 साल तक इस विषय पर ज़रा भी ध्यान देंगे. पर पाँचवे साल में अथवा अगर बीच में कभी सरकार लड़खड़ाई तो मोदी को राममंदिर फिर से याद सकता है. कहने का अर्थ यह है कि अब मोदी को राममंदिर की याद सिर्फ़ तभी आएगी जब चुनाव फिर से नज़दीक आएँगे और जब उन्हें फिर से हिंदू वोटरों को एकजुट करने की आवश्यकता महसूस होगी. पर मोदी का यह राजनीतिक रंग कट्टर हिंदुत्ववादियों की नाराज़गी का कारण बन सकता है.
मुस्लिम वोटरों ने इस बार एकजुट होकर सिर्फ़ उसी प्रत्याशी को वोट दिया है जो चुनाव में भाजपा को टक्कर देने की स्थिति बना पाया. साधारण मुस्लिमों में मोदी के दंगाई छवि का ख़ौफ़ साफ दिखता है. यह ख़ौफ़ इस्लाम धर्म में पहले से मौजूद कट्टरता को और भी बढ़ाएगा.
कॉंग्रेस एवं देश-दुनिया के नामी अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने देश के नौजवानों को बेरोज़गारी के गड्ढे में फेंक दिया था. मोदी द्वारा गुजरात के विकास मॉडल की प्रचारित हवा नें देशभर के बेरोज़गार नवयुवकों में एक नई औद्योगिक क्रांति की आस पैदा कर दी है. वे मोदी द्वारा अपार संख्या में रोज़गार के अवसर लाने की प्रतीक्षा में बैठे हैं. उनके मन में बड़ी-बड़ी मल्टी-नेशनल कंपनियों के वातानुकूलित एवं संगमरमर जैसे फर्श वाले कमरों में बैठकर काम करने ख्वाब पल रहे हैं. जबकि अभी भी देश में काफ़ी संख्या में ऐसे गाँव हैं जहाँ तक सड़कें एवं बिजली नहीं पहुँची हैं. बिहार में बिजली ही प्रमुख समस्या थी जिसकी वजह से वहाँ के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार प्रयास करके भी पिछले नौ वर्षों में एक भी वृहत उद्योग नहीं लगवा सके.
देश का मध्यम आर्थिक-वर्गीय परिवार अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार की धारणा से प्रभावित है. उसका मानना है कि देश में व्याप्त भ्रष्टाचार ही मँहगाई एवं अन्य सामाजिक-आर्थिक समस्याओं की मूल जड़ है. जबकि निम्न आर्थिक-वर्गीय परिवार एवं कम पढ़े-लिखे लोगों की सीधी अवधारणा है कि नरेंद्र मोदी आएँगे और मँहगाई को भगाएँगे. अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में बढ़ी कमरतोड़ मँहगाई से परेशान होकर ही इन वर्गों के लोगों ने मोदी को वोट किया है. अगर मँहगाई 1 साल के अंदर नहीं घटी तो इस वर्ग में निराशा होगी जिसका प्रभाव आने वाले विधानसभा चुनावों में दिख सकता है.  
भ्रष्टाचार से निजात पाने की इच्छा रखने वाला मध्यम वर्ग नरेंद्र मोदी को हीरो की तरह रॉबर्ट वाड्रा पर प्रहार करते हुए देखना चाहता है, जबकि कॉंग्रेस-भाजपा की राजनीतिक परम्परा में सत्ता के साढ़े चार साल तक ऐसा कुछ भी करने का रिवाज नहीं रहा है. हाँ, चुनाव के समय एक-दूसरे पर खुलकर मौखिक आरोप-प्रत्यारोप की छूट को इन दोनों पार्टियों ने अपनी परम्परा में जगह दी है.
"सत्ता व्यक्ति को भ्रष्ट नहीं करती, सत्ता जाने का भय भ्रष्ट करता है." एक दशक बाद मिली सत्ता को बचाए रहने की बुनियाद मजबूत करने में  भाजपा एवं मोदी को अभी से ही लग जाना है. दोबारा जब भी उन्हें चुनाव में जाना होगा, तो उसके ठीक पहले फिर से राममंदिर-निर्माण का मुद्दा उठाकर भाजपा या मोदी हिंदुत्ववादी जनता को आंदोलित नहीं कर पाएँगे. इसलिए उनके पास सबसे सुरक्षित विकल्प है विकास का - देश के विकास का. जबकि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने देश का खजाना करीब-करीब खाली के कगार पर पहुँचा दिया है. ऐसे में विकास तो दूर की बात, जो चल रहा है वह भी कैसे चल पाएगा - ये महत्वपूर्ण चुनौती है. ऐसे में देश का सोना गिरवी रखकर अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए थोड़ा वक्त मिल सकता है, पर इसका दुष्प्रचार कॉंग्रेस उसी प्रकार करेगी जैसा कि उसने चंद्रशेखर की सरकार के समय सोना बेच देने का अफवाह फैला किया था. सोना बिना गिरवी रखे अर्थव्यवस्था में सुधार लाने का एक अतिरिक्त जो रास्ता बचता है, वह है विदेशों में जमा काला धन वापस लाने का.
जनता ने वोट देकर अपना फ़ैसला कर दिया है. अब फ़ैसला मोदी जी को करना है कि वे देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं और अपने लिए गये फ़ैसले पर कितना दृढ़ रह पाते हैं, क्योंकि उनकी अपनी पार्टी के लोग भी काँटे सहित गुलाब लिए उनकी राह में खड़े हैं.           

धनंजय कुमार सिन्हा, बोरिंग रोड, पटना

14 May, 2014

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