सब कुछ बदल गया है
सब कुछ बदल गया है जबसे तुम मिल गयी
सच्चा आस्तिक
हवाएँ बेपरवाह टकराती हैं पर्वत से
नदियाँ नहीं डरती शिलाओं की करवट से
कभी तो सुना नहीं –
हवाओं को कोई टोक दिया,
नदियों को सागर में मिलने से रोक लिया
दरअसल अपनी स्वाभाविकता में जो कोई भी होता है
जो आगे की बातें खुदा पर छोड़ देता है
वही सफल होता पाने में मंजिल
उसी को खुदा हर ख़ुशी देता है,
साहस से आत्मा की पुकार पर बढ़ जाये जो
वही सच्चा आस्तिक भी होता है
विरह
विरह में दिल पिया को पागल हो बुलाता है
विरह ही पहली बार प्रेम का अहसास दिलाता है
विरह में आदमी खो जाता है
बीता पल बहुत याद आता है
विरह दिल की प्यास बढ़ाता है
मिलन की आस दिलाता है
विरह नींदें चुराता है
रंगीन सपने बुन जाता है
कुछ ज्यादा बढ़ जाये तो
विरह बहुत रुलाता है
विरह गुदगुदाता है
दर्द मीठे दे जाता है
’प्रेम है’ इंकार करने से
विरह और भी तड़पता है
विरह एक इंतजार है
दिल होता बेकरार है
दिखता नहीं कुछ भी साजन सिवा
विरह में नशा होता सवार है
विरह काटे नहीं कटता है
दर्द क्षण-क्षण में बढ़ता है
सूरज भी पक्षपात करता है
लंगरा-लंगरा कर चलता है
विरह आदमी की उम्र को बढ़ाता है
पहली बार प्रेम का अहसास दिलाता है
रात भर सोता नहीं सूरज
रात भर सोता नहीं सूरज
छिप-छिप कर रोता है सूरज
सुबह हुई, सूरज आया है
आँखें उसकी लाल-लाल है,
पड़ी घास पर बूंदें सभी
उसके अश्रुओं की फुहार है
किरण-वस्त्र से पोंछ रहा वह
अश्रु-बूंदों को सोख रहा वह
कर प्रकाश, प्रिया को खोज रहा वह
थक कर अब घर लौट रहा वह
कल फिर आएगा वह
बादलों को साथ लिए
छिप-छिप कर ढूंढेगा उसको
एक नयी आस लिए
रात भर सोता नहीं सूरज
छिप-छिप कर रोता है सूरज
जब छूट जाता है
बहुत याद आता है, जब छूट जाता है
यूँ तो कितने ही गिले रहते हैं
आँखों से आंसू भी कभी बहते हैं
कहने को नहीं मिलता है जब कोई
अन्दर ही अन्दर घुटन सहते हैं
परवाह नहीं रहती, जब साथ वो होता है
आयेंगे सैकड़ों – अहसास ये होता है
आता समझ नहीं, पल-पल क्या खोता है
बिछुड़ने के बाद नयन छिप-छिप कर रोता है
जाने को जब हाथ वह हिलाता है,
दर्द हर पल दुगुना कर जाता है
मैं पापा का दुलारा हूँ
घर बहुत प्यारा है
माँ भी बहुत प्यारी है
मैं पापा का दुलारा हूँ
उनकी आँखों का तारा हूँ
अनगिनत दुखों ने
अपनी नुकीली नाखूनों से
माँ के चेहरे पर
अनगिनत रेखाएं खींच दी है,
जैसे
चिलचिलाती धूप की बौछार से
पृथ्वी की नदियों को सुखा दिया गया हो
पापा
यूँ तो बहुत शांत रहते हैं,
पर जिस तरह
बीच-बीच में उनके बाल
हलके लाल-लाल हो जाते हैं,
तब पता चल ही जाता है –
कि ये रंगे हुए काले-काले बाल
वस्तुतः सफ़ेद हैं,
उसी तरह
उनके ग़मों का ज्वार भी
बीच-बीच में उठकर
उनके चेहरे को छू जाता है
और रेत के कुछ कण छोड़ जाता है ।
चाहे जो भी हो
घर हमारा है
और बहुत ही प्यारा है
नयी सदी है
नयी सदी है, नया सफ़र है
नये लोग को बढ़ना होगा
नयी राह और नयी है मंजिल
नये कदम से चलना होगा
नये रंग में, नये ढंग से
नव-जीवन निर्मित करना होगा
नयी उमंग और नया जोश भी
नव-युवकों में भरना होगा
नया जो करना हो समाज तो
नवजातों को दीक्षित करना होगा
छोड़ पुरानी रीति-रिवाजें
नारी को शिक्षित करना होगा
अगर चाहिए देश नया तो
हाथ मिलाकर चलना होगा
भूल आपसी द्वेष-भाव सब
नयी सदी को गढ़ना होगा