रात भर सोता नहीं सूरज
रात भर सोता नहीं सूरज
छिप-छिप कर रोता है सूरज
सुबह हुई, सूरज आया है
आँखें उसकी लाल-लाल है,
पड़ी घास पर बूंदें सभी
उसके अश्रुओं की फुहार है
किरण-वस्त्र से पोंछ रहा वह
अश्रु-बूंदों को सोख रहा वह
कर प्रकाश, प्रिया को खोज रहा वह
थक कर अब घर लौट रहा वह
कल फिर आएगा वह
बादलों को साथ लिए
छिप-छिप कर ढूंढेगा उसको
एक नयी आस लिए
रात भर सोता नहीं सूरज
छिप-छिप कर रोता है सूरज
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