Thursday, January 26, 2012

सच्चा आस्तिक


हवाएँ बेपरवाह टकराती हैं पर्वत से

नदियाँ नहीं डरती शिलाओं की करवट से


कभी तो सुना नहीं

हवाओं को कोई टोक दिया,

नदियों को सागर में मिलने से रोक लिया


दरअसल अपनी स्वाभाविकता में जो कोई भी होता है

जो आगे की बातें खुदा पर छोड़ देता है

वही सफल होता पाने में मंजिल

उसी को खुदा हर ख़ुशी देता है,

साहस से आत्मा की पुकार पर बढ़ जाये जो

वही सच्चा आस्तिक भी होता है

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