मैं पापा का दुलारा हूँ
घर बहुत प्यारा है
माँ भी बहुत प्यारी है
मैं पापा का दुलारा हूँ
उनकी आँखों का तारा हूँ
अनगिनत दुखों ने
अपनी नुकीली नाखूनों से
माँ के चेहरे पर
अनगिनत रेखाएं खींच दी है,
जैसे
चिलचिलाती धूप की बौछार से
पृथ्वी की नदियों को सुखा दिया गया हो
पापा
यूँ तो बहुत शांत रहते हैं,
पर जिस तरह
बीच-बीच में उनके बाल
हलके लाल-लाल हो जाते हैं,
तब पता चल ही जाता है –
कि ये रंगे हुए काले-काले बाल
वस्तुतः सफ़ेद हैं,
उसी तरह
उनके ग़मों का ज्वार भी
बीच-बीच में उठकर
उनके चेहरे को छू जाता है
और रेत के कुछ कण छोड़ जाता है ।
चाहे जो भी हो
घर हमारा है
और बहुत ही प्यारा है
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