Thursday, January 26, 2012

मैं पापा का दुलारा हूँ


घर बहुत प्यारा है

माँ भी बहुत प्यारी है

मैं पापा का दुलारा हूँ

उनकी आँखों का तारा हूँ


अनगिनत दुखों ने

अपनी नुकीली नाखूनों से

माँ के चेहरे पर

अनगिनत रेखाएं खींच दी है,

जैसे

चिलचिलाती धूप की बौछार से

पृथ्वी की नदियों को सुखा दिया गया हो


पापा

यूँ तो बहुत शांत रहते हैं,

पर जिस तरह

बीच-बीच में उनके बाल

हलके लाल-लाल हो जाते हैं,

तब पता चल ही जाता है –

कि ये रंगे हुए काले-काले बाल

वस्तुतः सफ़ेद हैं,


उसी तरह

उनके ग़मों का ज्वार भी

बीच-बीच में उठकर

उनके चेहरे को छू जाता है

और रेत के कुछ कण छोड़ जाता है ।


चाहे जो भी हो

घर हमारा है

और बहुत ही प्यारा है

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