Thursday, January 26, 2012


विरह


विरह में दिल पिया को पागल हो बुलाता है

विरह ही पहली बार प्रेम का अहसास दिलाता है


विरह में आदमी खो जाता है

बीता पल बहुत याद आता है

विरह दिल की प्यास बढ़ाता है

मिलन की आस दिलाता है


विरह नींदें चुराता है

रंगीन सपने बुन जाता है

कुछ ज्यादा बढ़ जाये तो

विरह बहुत रुलाता है


विरह गुदगुदाता है

दर्द मीठे दे जाता है

’प्रेम है’ इंकार करने से

विरह और भी तड़पता है


विरह एक इंतजार है

दिल होता बेकरार है

दिखता नहीं कुछ भी साजन सिवा

विरह में नशा होता सवार है


विरह काटे नहीं कटता है

दर्द क्षण-क्षण में बढ़ता है

सूरज भी पक्षपात करता है

लंगरा-लंगरा कर चलता है


विरह आदमी की उम्र को बढ़ाता है

पहली बार प्रेम का अहसास दिलाता है

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