विरह
विरह में दिल पिया को पागल हो बुलाता है
विरह ही पहली बार प्रेम का अहसास दिलाता है
विरह में आदमी खो जाता है
बीता पल बहुत याद आता है
विरह दिल की प्यास बढ़ाता है
मिलन की आस दिलाता है
विरह नींदें चुराता है
रंगीन सपने बुन जाता है
कुछ ज्यादा बढ़ जाये तो
विरह बहुत रुलाता है
विरह गुदगुदाता है
दर्द मीठे दे जाता है
’प्रेम है’ इंकार करने से
विरह और भी तड़पता है
विरह एक इंतजार है
दिल होता बेकरार है
दिखता नहीं कुछ भी साजन सिवा
विरह में नशा होता सवार है
विरह काटे नहीं कटता है
दर्द क्षण-क्षण में बढ़ता है
सूरज भी पक्षपात करता है
लंगरा-लंगरा कर चलता है
विरह आदमी की उम्र को बढ़ाता है
पहली बार प्रेम का अहसास दिलाता है
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